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आज उद्वेलित है सबका अंतः मन

आज उद्वेलित है सबका अंतः मन

कलियुग के इस नए दौर में
ऐसी कहानी जो किसी को राह दिखाएं
उसे जागृत कीजिए,प्रचारित कीजिए
आज उद्वेलित है सबका अंतः मन।
अपने में सिमट रही है ये दुनिया
गिनती की रह गई है रिश्तेदारी
हफ्ते भर भी कही रुक लेने का
रिशेतदारों के घर ढौर ढाव न रहा
आज उद्वेलित है सबका अंतः मन।
देन स्वच्छ हो, लेन स्वच्छ हो
धर्म पालन स्वच्छ हो
हर नर नारी का दिल स्वच्छ हो
ऐसा अब जमाना न रहा
आज उद्वेलित है सबका अंतः मन।
रफ्तार भरी इस दुनिया में
हम किसी एक चीज में खो जाते है
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं हर मानव
फिर भी किस्मत के सहारे बैठे है आज भी लोग
आज उद्वेलित है सबका अंतः मन।
मेरे भारत माता की इस पावन धरा में
समाएं हुए हैं सर्व ज्ञान
नयी ऊर्जा लाने को सज्जनों
आते है तीज और त्यौहार।
पर मानव आज भूल रहें है
अपना शक्ति और दिव्य ज्ञान
इसीलिए तो सज्जनों
आज उद्वेलित है सबका अंतः मन।

नूतन लाल साहू

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6 Comments

KALPANA SINHA

29-Sep-2023 01:50 PM

Amazing

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Alka jain

28-Sep-2023 05:36 PM

V nice

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सुन्दर सृजन

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